किसी भी पेड़ में साया नहीं है,
खिज़ाँ का वक्त भी आया नहीं है।
अगर चाहो तो जंगल पार कर लो,
अँधेरा अब भी गहराया नहीं है।
बड़ा खुश हो रहा दो गाम चलकर,
अभी तक धूप में आया नहीं है।
लबों पे कोह लफ़्ज़ों के धरे हैं,
तख़ैयुल में प' सरमाया नहीं है।
नदी की आँख में ये अश्क कैसा,
समुंदर ने तो धमकाया नहीं है।