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किसी सफ़र किसी अस्बाब से इलाक़ा नहीं / ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

किसी सफ़र किसी अस्बाब से इलाक़ा नहीं
तुम्हारे बाद किस ख़्वाब से इलाक़ा नहीं

हमारे अहद की दीवानगी हमीं से है
हमारे अस्र को महताब से इलाक़ा नहीं

मगर ये ख़्वाब अगर ख़्वाब हैं तो कैसे हैं
कि जिन को दीदा-ए-बे-ख़्वाब से इलाक़ा नहीं

हर एक साज़ को साज़िंदगाँ नहीं दरकार
बदन को ज़र्बत-ए-मिज़राब से इलाक़ा नहीं