किसी से न कोई शिकायत करें हम
चलो अब सभी से मुहब्बत करें हम।
न हो कोई दुश्मन जहाँ में हमारा
दिलों से अभी दूर नफरत करें हम।
ज़माना भले साथ छोड़े हमारा
खुदा बन ख़ुदी से सदाकत करे हम।
तेरे जो है अंदर, वही सबमें रौशन
कहो क्यूं किसी से अदावत करें हम ।
थिरक जायें होठों पे सबके ये 'स्मिता'
बुझी महफ़िलों पर इनायत करें हम।