किसे बताऊँ कि वहशत का फ़ाएदा क्या है
हवा में फूल खिलाने का क़ाएदा क्या है
पयम्बरों ने कहा था कि झूठ हारेगा
मगर ये देखिए अपना मुशाहिदा क्या है
तमाम उम्र की ज़हमत का अज्र ये दुनिया
ये किस से पूछिये आख़िर मुआहिदा क्या है
सभी ख़ामोश हैं अफ़सुर्दगी का दफ़्तर हैं
खुले तो कैसे कि वो हुक्म-ए-आएदा क्या है
उसी का ख़्वाब है मेरी नवा-ए-ख़्वाब ‘नईम’
मिरा वजूद भी उसे अलाहदा क्या है