भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किस-किस तरह से मुझको / शहरयार

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:28, 25 मई 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किस-किस तरह से मुझको न रुसवा किया गया
ग़ैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया

निकला था मैं सदा-ए-जरस की तलाश में
भूले से इस सुकूत के सहरा में आ गया

क्यों आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
क्यों आज उस का नाम मेरा दिल दुखा गया

इस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया