भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"किस को गुमाँ है अबके मेरे साथ तुम भी थे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
किस को गुमाँ है अबके मेरे साथ तुम भी थे,
 
किस को गुमाँ है अबके मेरे साथ तुम भी थे,
हाय वो रोज़ो-शब कि मेरे साथ तुम भी थे
+
हाय वो रोज़ो-शब के मेरे साथ तुम भी थे
  
 
यादश बख़ैर  अहदे-गुज़िश्ता की सोहबतें,
 
यादश बख़ैर  अहदे-गुज़िश्ता की सोहबतें,
एक दौर था अजब कि मेरे साथ तुम भी थे
+
एक दौर था अजब के मेरे साथ तुम भी थे
  
 
बे-महरी-ए-हयात की शिद्दत के बावजूद,
 
बे-महरी-ए-हयात की शिद्दत के बावजूद,
दिल मुतमईन था जब कि मेरे साथ तुम भी थे
+
दिल मुतमईन था जब के मेरे साथ तुम भी थे
  
 
मैं और तकाबिले- ग़मे-दौराँ का हौसला,
 
मैं और तकाबिले- ग़मे-दौराँ का हौसला,
कुछ बन गया सबब कि मेरे साथ तुम भी थे
+
कुछ बन गया सबब के मेरे साथ तुम भी थे
  
 
इक ख़्वाब हो गई है रह-रस्मे- दोसती,
 
इक ख़्वाब हो गई है रह-रस्मे- दोसती,
एक वहम सा है अब
+
एक वहम -सा है अब के मेरे साथ तुम भी थे
कि मेरे साथ तुम भी थे
+
  
 
वो बज़्म मेरे दोस्त याद तो होगी तुम्हें "फराज़"
 
वो बज़्म मेरे दोस्त याद तो होगी तुम्हें "फराज़"
वो महफ़िले-तरब कि मेरे साथ तुम भी थे
+
वो महफ़िले-तरब के मेरे साथ तुम भी थे
 
</poem>
 
</poem>

22:46, 21 जून 2010 के समय का अवतरण

किस को गुमाँ है अबके मेरे साथ तुम भी थे,
हाय वो रोज़ो-शब के मेरे साथ तुम भी थे

यादश बख़ैर अहदे-गुज़िश्ता की सोहबतें,
एक दौर था अजब के मेरे साथ तुम भी थे

बे-महरी-ए-हयात की शिद्दत के बावजूद,
दिल मुतमईन था जब के मेरे साथ तुम भी थे

मैं और तकाबिले- ग़मे-दौराँ का हौसला,
कुछ बन गया सबब के मेरे साथ तुम भी थे

इक ख़्वाब हो गई है रह-रस्मे- दोसती,
एक वहम -सा है अब के मेरे साथ तुम भी थे

वो बज़्म मेरे दोस्त याद तो होगी तुम्हें "फराज़"
वो महफ़िले-तरब के मेरे साथ तुम भी थे