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किस को मन के घाव दिखायें हाल सुनायें जी के / सूर्यभानु गुप्त

किस को मन के घाव दिखायें हाल सुनायें जी के
इन्सानों से ज़ियादा अच्छे पत्थर किसी नदी के

सारी उम्र छुड़ाते गुज़रे महाजनों से - चेहरे
बँधुआ मज़दूरों से अब तो जीवन हुये सभी के

हर काँधे पर अनगिन चेहरे गिनती क्या एक दो की
रावण से भी ज़ियादा चेहरे इस आधुनिक सदी के

हैज़ा, टी. बी.,चेचक से मरती थी पहले दुनिया
मन्दिर, मसजिद, नेता, कुरसी हैं ये रोग अभी के

भूली-बिसरी यादों के ओ जोगी आते रहियो
जी हल्का कर जाते तेरे फेरे कभी-कभी के