Last modified on 29 मार्च 2014, at 09:52

किस से पूछें कौन बताए किसी ने महशर देखा है / शमीम तारिक़

किस से पूछें कौन बताए किसी ने महशर देखा है
चुप चुप है आईना जिस ने सारा मंज़र देखा है

मंज़िल मंज़िल चल कर जब भी आई लहू में डूबी रात
आहट आहट क़त्ल हुआ है क़दमों में सर देखा है

तू ही बता रूख़्सार पे उस के कितने तिल हैं कितने दाग़
तू ने तो ऐ दीदा-ए-बीना फूल को पत्थर देखा है

महफ़िल महफ़िल जिस के चर्चे गुलशन गुलशन जय-जय-कार
हम ने उसी के हाथ में यारों अक्सर ख़ंजर देखा है

लर्ज़ां तरसाँ बर-सर-ए-मिज़्गाँ ख़ून के आँसू हैं ‘तारिक़’
शम-ए-फ़रोज़ाँ शहर में ले कर ख़ूनी मंज़र देखा है