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कि जीवन आशा का उल्‍लास / हरिवंशराय बच्चन

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कि जीवन आशा का उल्‍लास,

कि जीवन आशा का उपहास,

कि जीवन आशामय उद्गार,

कि जीवन आशाहीन पुकार,


दिवा-निशि की सीमा पर बैठ
निकालूँ भी तो क्‍या परिणाम,
विहँसता आता है हर प्रात,
बिलखती जाती है हर शाम!