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कि जैसे हो महाराजे ! / शैलेन्द्र शान्त

ई ससुरी रोटी-दाल
तेल तरकारी
चीनी चावल,
रोज़ी
निकली खोटी
भक्ति के आगे
दुम दबा कर
विकास है भागे
भई वाह !
काले ख़ाकी
मुसटण्डों के
क़िस्मत है जागे
जहाँ-तहाँ डण्डे हैं भाँजे
भई वाह !
माता के भाग्य विधाता
नए-नए बजा रहे
अपनी तुरही
अपने बाजे !
गुमान भी उनके देखें
कि जैसे हों महाराजे !