भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
की के लानें कोसें भैया / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:07, 11 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश कटारे सुगम |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
की के लानें कोसें भैया
हम हैं बखत भरोसें भैया
मेंगाई में मौड़ा-मोड़ी
कैसें पालें-पोसें भैया
कैसेंउ अपनौ काम चला रये
लैकें तोसें मोसें भैया
जे ऐसे हैं रोज़ रात कें
पौआ एक ढगोसें<ref>पीना</ref> भैया
सिक नईं पा रईं अपनी गूदें<ref>चोटें</ref>
कैसें कोउ की सोसें<ref>सोचें</ref> भैया
शब्दार्थ
<references/>