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कुँवारी लड़की / कल्पना मिश्रा

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उसे बहुत प्यारा था, अपना कुँवारापन
अपनी बेफीक्री और बेतकल्लुफ ज़िंदगी
बहुत पसंद थी उसे
घंटो दोस्तों के साथ समय बिताना,
उसके जीवन का हिस्सा था
ना सजना, ना सँवरना, बस मचलना,
उसके जीवन का किस्सा था
चिड़िया ना सही, पर चिड़ियों सी
उड़ान थी उसकी
स्वच्छंद, स्वतंत्र, अपनी अच्छाइयों व
बुराइयों के साथ
एक अलग पहचान थी उसकी
खूब हँसती, हरदम मुस्कुराती और
अपने अनछुए बदन पर इठलाती
अपने कुँवारेपन से बिना कोई शिकायत किये
हर पल का आनंद उठाती
व्यर्थ समय गँवाना, अक्सर सामान गिराना
बहुत सी बड़बड़ करती थी
कुछ पढ-लिख कर नई सोच लेकर
अक्सर गड़बड़ करती थी
दुनिया छोटी पर सपने ऊँचे थे उसके
सभी की वह और सभी थे उसके
खूब नाचती, खूब गाती, बेपरवाह रहती थी
मेरी अपनी एक पहचान है, अक्सर ऐसा कहती थी।
खूब सोती खूब सपने देखती थी
दया करती और गरीबों के लिऐ खूब सोचती थी,

सपनों का राजकुमार सपनों में ही रहता था
एक दिन दुनिया बदल जायेगी उसकी
शायद यही कहता था
धारावाहिकों में खो जाती, फिल्मों में
गुम हो जाती थी,
कई बार दुनिया की बेदर्दी से
गुमसुम हो जाती थी।
बच्चों को बहुत प्यार करती,
फूलों को निहारती थी,
चंदा मामा को देखती रहती, तारों को पुकारती थी
उसे अपने कुँवारेपन पर नाज था
अब तक यही उसका ताज था
नजर लगी ताज छूटा, हो गई शादी
विदा हो गई ।
आज सात फेरों से वह अपने
कुँवारेपन से जुदा हो गई ।