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कुंडलिया / शम्भुदान चारण

निज प्रसंसी नानरे नेह लग नही नेक ,
नुगती कारण जगत में भुगत बणेकर भेक,
भगत बणेकर भेक प्रशंसा खुदरी चावे ,
अलख सग्ती रो चीन इसारे आगे आवे ,
केज्यो री "शम्भू" कवि अर्थ वणे नई एक,
निज प्रसंशी नामरे हलगे नही नेक ||१||

नीत बड़ी है न्याय की, मीत बड़ो दे मान,
जीत बड़ी है जोग की, अपणी राखे आन ,
अपणी राखे आन धान कारण देह धाई,
जिणविध जोग जरुर मोन का देह के माई,
जोग बिना धीजो नही गुरु बिना नाही ज्ञान,
नीत बड़ी है न्याय की, मीत बड़ो दे मान||२||

क्लेश करम को त्याग के क्रम फल सुध न कोय,
संसकार क्रम वासना रहित वीसे हरी होय ,
रहित वीसे हरी कोय राग अरु द्वेश न राखे,
हर्ष शोक नही हार भाव इश्वर रो भाखे,
नेक बड़ो निर्द्वंद है देख न कोई दोय ,
क्लेश करम को त्याग के क्रम फल सुध न कोय ||३||

सुख मत दीजे सांवरा दुःख मम दीजे देव,
हरी याद हर दम रहे सत गुरुसा री सेव ,
सत गुरुसा री सेव दया अरु सुमिरण दीजे,
नाम जपतो नेक संग संतन को दीजे ,
संत हमारे सीर धणी करम वचन संत कैव,
सुख मत दीजे सांवरा दुःख मम दीजे देव ||४||

अमर में नही ईस हैमे मृत्यु को माद ,
जनम अथा जूणो तणा ईस रहो मम याद ,
ईस रहो मम याद सुमिरतो नाम सदाही,
करम नदी कीजे कुर संत को साच सदाही,
नित्य करम को नेमदे अटल ज्ञान दे आद,
अमर मैं नही ईस है , मैं भ्रसुको नाद||५||

प्रेम उतर को पाय के ओर न उर में आस,
वसे वास विसवास से पार ब्रह्म के पास,
पार ब्रह्म के पास अमर पद आदर पावे ,
सुरगन सबद सुहाय करम नित कीर्तन गावे,
प्रेम जंहा पूरण दया दामोदर को दास,
प्रेम उतर को पाय के ओर न उर में आस ||६|

ईस भजन के आसरे कभी न अटके काम,
सुमिरण री मोती सता ररंकार रट राम ,
ररंकार रट राम गुरु में आस लगाई,
करम करे निसकाम सुमिरतो नाम सदाई,
सत्य वचन के आसरे कभी न अटके काम ,
ईस भजन के आसरे कभी न अटके काम ||७||

इश्वर के उपकार को सदा नमाऊ शीश ,
मानव तन दीनो मने उत्तम कुल आसीस,
उत्तम कुल आसीस सदा सत संग मांही ,
सत्य वचन को सार गुरु में आस लगाई,
सुकरथ कर ले सोधाले आदर माई ईस,
इश्वर के उपकार को सदा नमाऊ शीश ||८||

इश्वर रो आदर करो गुरु से लीजे ज्ञान ,
सीख हमेशा संत कि मुद्दत बड़ी है मान ,
मुद्दत बड़ी है मान मुक्ति सूं अर्थ जंचाई,
मुक्ति दे महाराज राम राग माय रचाई ,
साज नेम सुमिरण सदा भाव में उपजे भान,
इश्वर रो आदर करो गुरु से लीजे ज्ञान ||९||

कहे शब्द कथकर कवि गज़ब किया गिंवार,
मानव देह के मोय में भाजियो नही भरतार ,
भाजियो नही भरतार अकल बिना होय अंधारो,
दियो कदे नी दान धर्म उर में नही धारो ,
नेक कर्म किया नही भरम ओढ़ीयो भार,
कहे शब्द कथकर कवि गणन कि यह गवार ||१०||

भेक लियो नेकी भाको दोष तजि भजदेव,
सदा सत्य सांगत करो सत गुरु सारी सेव ,
सत गुरु सारी सेव अजया नाम उचारो ,
अण गड़ के आधार खलक में अलख सहारो,
नाम सच्चिदानंद को लाज तजि कर लेव ,
 भेक लियो नेकी भाको दोष तजि भजदेव||११||