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कुंभ / संजय पुरोहित

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अघोरी धुंआ
फाकामस्तं अययाशी फकीरी हुनर
माटी की चिलम
बेफिक्री का सुट़टा
भभूत रंगी देही
राख रमा मन
चंदन गूंथी जटा
जंतर मंतर वाणी काजल मसाणी
जबर हठ अबोले मठ
जोगी भोगी योगी
बेरंग बेमेल बेढब
माला मोती मनके
तावीज बंधे प्रेत
और
बिसरे चेहरों
को अधपक नैनों से धकेलती
अधलेटी पलकें

एक डुबक डुबकी से
नदी उजासे
मैला तम
डूबा मन
कराये
भौसागर पार

देखूं विचारूं
छिपा है
इस मायावी बदरंग
में ही
रंग खरा ?
क्याख ये
चितराम
क्षितिज पार
से है
न्यौतता मुझे ?