Changes

"[[कुछ ऐसा खेल रचो साथी / गोपाल सिंह नेपाली]]" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))
|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
कुछ ऐसा खेल रचो साथी!
कुछ जीने का आनंद मिले
कुछ मरने का आनंद मिले
दुनिया के सूने आँगन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
दुनिया के सूने आँगन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी वह मरघट का सन्नाटा तो रह -रह कर काटे जाता हैदुःख दर्द तबाही से दबकर, मुफलिस मुफ़लिस का दिल चिल्लाता है
यह झूठा सन्नाटा टूटे
पापों का भरा घड़ा फूटे
तुम जंजीरों ज़ंजीरों की झनझन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!
यह उपदेशों का संचित रस तो फीका -फीका लगता हैसुन धर्म -कर्म की ये बातें दिल में अंगार सुलगता हैचाहे यह दुनियां दुनिया जल जायेजाए
मानव का रूप बदल जाए
तुम आज जवानी के क्षण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!
यह दुनियां दुनिया सिर्फ सफलता का उत्साहित क्रीड़ा -कलरव है
यह जीवन केवल जीतों का मोहक मतवाला उत्सव है
तुम भी चेतो मेरे साथी
तुम भी जीतो मेरे साथी
संघर्षों के निष्ठुर रण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!
जीवन की चंचल धारा में, जो धर्म बहे बह जाने दो
मरघट की राखों में लिपटी, जो लाश रहे रह जाने दो
कुछ आंधी आँधी-अंधड़ आने दो
कुछ और बवंडर लाने दो
नव जीवन नवजीवन में नव यौवन नवयौवन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!
जीवन तो वैसे सबका है, तुम जीवन का श्रिंगार शृंगार बनो
इतिहास तुम्हारा राख बना, तुम राखों में अंगार बनो
अय्याश जवानी होती है
गत -वयस कहानी होती हैतुम अपने सहज लड़कपन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी|!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,183
edits