भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुछ कीजिए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: '''Bold text'''ईमान हुआ बेघर, कुछ कीजिए ।<br> भटकता है दर–बदर ,कुछ कीजिए ।<br> फ़रेब क...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''Bold text'''ईमान  हुआ  बेघर, कुछ कीजिए ।<br>
+
हुआ  बेघर, कुछ कीजिए ।<br>
  
 
भटकता है दर–बदर ,कुछ कीजिए ।<br>
 
भटकता है दर–बदर ,कुछ कीजिए ।<br>

22:41, 2 नवम्बर 2007 का अवतरण

हुआ बेघर, कुछ कीजिए ।

भटकता है दर–बदर ,कुछ कीजिए ।

फ़रेब के सैलाब से न बच सके

परेशान है रहबर ,कुछ कीजिए ।

रहनुमा बनकर जो कल गले मिले।

वे लिये आज ख़ज़र,कुछ कीजिए ।

बेहया हो गया मौसम बहार का ।

मुश्किल है बहुत सफ़र,कुछ कीजिए ।

ख़ुदा! तू भी परेशान ही होगा

तेरा ख़ौफ़ बेअसर ,कुछ कीजिए ।