भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ कीजिए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:04, 6 नवम्बर 2007 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हुआ बेघर, कुछ कीजिए ।

भटकता है दर–बदर, कुछ कीजिए ।

फ़रेब के सैलाब से न बच सके

परेशान है रहबर, कुछ कीजिए ।

रहनुमा बनकर जो कल गले मिले।

वे लिये आज ख़ज़र, कुछ कीजिए ।

बेहया हो गया मौसम बहार का ।

मुश्किल है बहुत सफ़र, कुछ कीजिए ।

ख़ुदा! तू भी परेशान ही होगा

तेरा ख़ौफ़ बेअसर, कुछ कीजिए ।