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कुछ कीजिए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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हुआ बेघर, कुछ कीजिए ।

भटकता है दर–बदर ,कुछ कीजिए ।

फ़रेब के सैलाब से न बच सके

परेशान है रहबर ,कुछ कीजिए ।

रहनुमा बनकर जो कल गले मिले।

वे लिये आज ख़ज़र,कुछ कीजिए ।

बेहया हो गया मौसम बहार का ।

मुश्किल है बहुत सफ़र,कुछ कीजिए ।

ख़ुदा! तू भी परेशान ही होगा

तेरा ख़ौफ़ बेअसर ,कुछ कीजिए ।