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"कुछ तबीयत ही मिली थी / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फसाना बदला<br>
 
जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फसाना बदला<br>
ऱसम-ए-दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई<br><br>
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रस्में दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई<br><br>
  
 
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बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसीसे ही श़िकायत ना हुई<br><br>
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दोस्ती भी तो निभाई ना गई दुश्मनी में भी अदावत ना हुई<br><br>
 
दोस्ती भी तो निभाई ना गई दुश्मनी में भी अदावत ना हुई<br><br>

21:45, 8 सितम्बर 2006 का अवतरण

शायर: निदा फ़ाज़ली

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कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई

जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फसाना बदला
रस्में दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई

दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा ना लगा
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसीसे भी शिकायत ना हुई

वक्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना ना मिला
दोस्ती भी तो निभाई ना गई दुश्मनी में भी अदावत ना हुई