भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ तेरा चेहरा मुझे लगता है पहचाना हुआ / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी

Kavita Kosh से
Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:51, 8 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद' संग्रह= }} {{KKCatGazal}} <poem> कुछ तेरा चे…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद' संग्रह= }} साँचा:KKCatGazal


कुछ तेरा चेहरा मुझे लगता है पहचाना हुआ
जिन्दगी सूरत तेरी देखे हुए अरसा हुआ

क्या रकीबों ने कहा कुछ या कोई सदमा हुआ
कुछ तो कहिये आपका चेहरा है क्यों उतरा हुआ

टूटना इनका मुकद्दर है तो कोई क्या करे
दिल हुआ शीशा हुआ हिम्मत हुई तारा हुआ

कुछ तेरी आँखें भी बोझल और कुछ मैं भी निढाल
मैं थका दिन भर का तू भी रात का जागा हुआ

मौत से इक बार मुमकिन है कि बच जाए कोई
ज़िंदगी, पानी न मांगेगा तेरा काटा हुआ

हम फकीराने मोहब्बत के लिए सब एक है
घर हुआ मंदिर हुआ मस्जिद कि मैखाना हुआ

ज़िंदगी तू भी बहुत है मुझसे उकताई हुई
सच कहूँ तो मैं भी हूँ तुझसे बहुत ऊबा हुआ

वो मेरा अक्सर गुलोबुलबुल के किससे छेड़ना
और उनका बारहा ये पूछना फिर क्या हुआ

बढ़ गयी उतनी ही मेरी उलझनें दुश्वारियां
वो मेरे बारे में 'बेखुद' जितना संजीदा हुआ