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1खुशबू चारों ओर से,लेती मुझको घेर।तुम आए हो द्वार पर,लेकर आज सवेर।।2जब रब ने हमसे कहा, कुछ तो माँगो आज। तुम्हें माँगकर पा लिया,तीन लोक का राज।।3मैं तुझमें ऐसे रहूँ,जैसे नीर -तरंग।आए जो तूफान भी,नहीं छोड़ती संग।।4सब कुछ पाते लोग हैं, जिसका जैसा भाग।हमें मिला वरदान में,प्रिय तेरा अनुराग।।5प्यार किया हमने कभी, चलकर नंगे पाँव।बिना बात वे जल उठे, जिनको बाँटी छाँव ॥6हम तो झरते पात हैं, मंजिल अपनी पास ।जिस दिन हम होंगे नहीं, होना नहीं उदास ॥7मूरख बनकर देखते , हम तो सारे खेल।अंगारों से सींचते , वे रिश्तों की बेल ॥8बीच प्रेम जलधार है,हम नदिया के कूल।मन पर लेना ना कभी,कुछ शब्दों की भूल।।9मन में उमड़ें भाव से ,शब्द मानते हार।प्रेम -भाव अतिरेक में,भटकें बारम्बार ।।10मुझको इतना चाहिए,आकर तेरे द्वार।अपने सब दुख दान दो,मेरी यही पुकार।।11मिलते हैं संसार में,सबको लाखों लोग।तुम-से मिल जाएँ जिसे,यह केवल संयोग।12कौन बड़ा ,छोटा वहाँ,जहाँ प्रेम- सञ्चार।मिला नीर से नीर तो,उमगे भाव,विचार।13वक़्त नहीं, लम्बा सफ़र, मत खोना पल एक।तुझ पर ही विश्वास है, तुझ पर अपनी टेक।14कैसे बीते पल ,घड़ी, जब तुम होते मौन।आहट पर ही कान थे,आई थी बस पौन।।15अपने तो बनते रहे, पथ में बस अवरोध।हमसे कुछ भी भूल हो,तुम मत करना क्रोध।।
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