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<poem>
146
खुशबू चारों ओर से,लेती मुझको घेर।
तुम आए हो द्वार पर,लेकर आज सवेर।।
247
जब रब ने हमसे कहा, कुछ तो माँगो आज।
तुम्हें माँगकर पा लिया,तीन लोक का राज।।
348
मैं तुझमें ऐसे रहूँ,जैसे नीर -तरंग।
आए जो तूफान भी,नहीं छोड़ती संग।।
449
सब कुछ पाते लोग हैं, जिसका जैसा भाग।
हमें मिला वरदान में,प्रिय तेरा अनुराग।।
550
प्यार किया हमने कभी, चलकर नंगे पाँव।
बिना बात वे जल उठे, जिनको बाँटी छाँव ॥
651
हम तो झरते पात हैं, मंजिल अपनी पास ।
जिस दिन हम होंगे नहीं, होना नहीं उदास ॥
752
मूरख बनकर देखते , हम तो सारे खेल।
अंगारों से सींचते , वे रिश्तों की बेल ॥
853
बीच प्रेम जलधार है,हम नदिया के कूल।
मन पर लेना ना कभी,कुछ शब्दों की भूल।।
954
मन में उमड़ें भाव से ,शब्द मानते हार।
प्रेम -भाव अतिरेक में,भटकें बारम्बार ।।
1055
मुझको इतना चाहिए,आकर तेरे द्वार।
अपने सब दुख दान दो,मेरी यही पुकार।।
11156
मिलते हैं संसार में,सबको लाखों लोग।
तुम-से मिल जाएँ जिसे,यह केवल संयोग।
1257
कौन बड़ा ,छोटा वहाँ,जहाँ प्रेम- सञ्चार।
मिला नीर से नीर तो,उमगे भाव,विचार।
1358
वक़्त नहीं, लम्बा सफ़र, मत खोना पल एक।
तुझ पर ही विश्वास है, तुझ पर अपनी टेक।
1459
कैसे बीते पल ,घड़ी, जब तुम होते मौन।
आहट पर ही कान थे,आई थी बस पौन।।
1560
अपने तो बनते रहे, पथ में बस अवरोध।
हमसे कुछ भी भूल हो,तुम मत करना क्रोध।।