भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ तो मैं, मेरा ऑफिस और मेरे काम / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
कुछ तो मैं, मेरा ऑफिस और मेरे काम
फिर तुम, तुम्हारा ऑफिस, तुम्हारे काम
सुनो, बहुत रात हुई आओ सो जायें