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कुछ दूर तक तो साथ कज़ा ले गई मुझे / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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कुछ दूर तक तो साथ कज़ा ले गई मुझे ।
फिर माँ की दुआ आके बचा ले गई मुझे ।

बरसा था मुझपे इस तरह भी नूर-ए-इलाही,
बारिश की एक बूँद बहा ले गई मुझे ।

ऐसा भी मोड़ आया इबादत में इश्क़ की,
दर तक ख़ुदा के मेरी रज़ा ले गई मुझे ।

बरसूँ मैं इससे पहले कि अश्क़ों की शक़्ल में,
सूरज की कड़ी धूप सुखा ले गई मुझे ।

जब भी कहीं पे तेरा तसव्वुर किया गया,
ख़ुशबु वहाँ बना के हवा ले गई मुझे ।

बच्चे की तरह रो रहा था राह में खड़ा,
उँगली पकड़ के किस की दुआ ले गई मुझे ।

जब-जब भी परेशाँ हुआ तब-तब कोई ग़ज़ल,
दुश्वारियों के दर से उठा ले गई मुझे ।