भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ बाकी तो नही रह गया / सुनीता शानू
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 9 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता शानू |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरा बार-बार कहना
एक ही बात दोहराना
वही बात
कुछ बाकी तो नही रह गया
तुमसे कुछ कहना
एक के बाद एक
कहते चले जाना
एक ही सवाल
जो कहा है जाने कितनी बार
नया कुछ भी नही
किन्तु लगता है नया नया
तुम्हारा चिढ़ाना
मेरा बार-बार वही दोहराना
तुम जानते हो सब कुछ
फिर भी
कहो ना
कुछ बाकी तो नही रह गया
तुमसे कुछ कहना।