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कुछ बादल कुछ चाँद से प्यारे प्यारे लोग / राग़िब अख़्तर

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कुछ बादल कुछ चाँद से प्यारे प्यारे लोग
डूब गए जितने थे आँख के तारे लोग

कुछ पाने कुछ खो देने का धोका है
शहर में जो फिरतें हैं मारे मारे लोग

शहर-ए-बदन बस रैन-बसेरा जैसा है
मंज़िल पर कब रूकते हैं बंजारे लोग

रोज़ तमाशा मेरे डूबते रहने का
देख रहे हैं बैठे ख़्वाब किनारे लोग