भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ भी कहना पाप हुआ / श्याम सखा 'श्याम'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ भी कहना पाप हुआ
जीना भी अभिशाप हुआ

मेरे वश में था क्या कुछ ?
सब कुछ अपने आप हुआ

तुमको देखा सपने में
मन ढोलक की थाप हुआ

कह कर कड़वी बात मुझे
उसको भी संताप हुआ

दर्द सुना जिसने मेरा
जब तक ना आलाप हुआ

शीश झुकाया ना जिसने
वो राना प्रताप हुआ

पैसा-पैसा-पैसा ही
सम्बन्धों का माप हुआ

इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
सिर्फ अगूंठा-छाप हुआ