भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ मेरी वफ़ादारी का इनआम दिया जाए / मुनव्वर राना
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:12, 10 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मुनव्वर राना |संग्रह=घर अकेला हो गया / मुनव्वर र...)
कुछ मेरी वफादारी का ईनाम दिया जाये
इल्जाम ही देना है तो इल्जाम दिया जाये
ये आपकी महफिल है तो फिर कुफ्र है इनकार
ये आपकी ख्वाहिश है तो फिर जाम दिया जाये
तिरशूल कि तक्सीम अगर जुर्म नहीं है
तिरशूल बनाने का हमें काम दिया जाये
कुछ फिरकापरस्तों के गले बैठ रहे हैं
सरकार इन्हें रौगने बादाम दिया जाये