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कुछ लोग इस तरह से ख़बरें खुरच रहे हैं / विनय कुमार

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कुछ लोग इस तरह से ख़बरें खुरच रहे हैं।
लगता है ज़माने को इतिहास रच रहे हैं।

खत खून से लिखा है खादी का लिफ़ाफ़ा है
मुंसिफ़ सरे कचहरी पढ़ने से बच रहे हैं।

अब झूठ झाड़ते हैं इस रौब से कि तौबा
विष्वास नहीं होता ये लोग सच रहे हैं।

अब आँच साँच की हो या आंच जांच की हो
उनके लिए नहीं है जो लोग जच रहे हैं।

किस मुँह से पहनियेगा बाना मदारियों का
बंदर नचा रहा है और आप नच रहे हैं।