भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ लोग इस तरह से ख़बरें खुरच रहे हैं / विनय कुमार

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 29 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय कुमार |संग्रह=क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है / विनय क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ लोग इस तरह से ख़बरें खुरच रहे हैं।
लगता है ज़माने को इतिहास रच रहे हैं।

खत खून से लिखा है खादी का लिफ़ाफ़ा है
मुंसिफ़ सरे कचहरी पढ़ने से बच रहे हैं।

अब झूठ झाड़ते हैं इस रौब से कि तौबा
विष्वास नहीं होता ये लोग सच रहे हैं।

अब आँच साँच की हो या आंच जांच की हो
उनके लिए नहीं है जो लोग जच रहे हैं।

किस मुँह से पहनियेगा बाना मदारियों का
बंदर नचा रहा है और आप नच रहे हैं।