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कुछ सपने और... / नीरज दइया

घुट घुट कर मरने से बेहतर है
जीएं कुछ देर और....

भूल जाएं सब कुछ
चलें कुछ आगे और....

किसी आकाश का बनकर बादल
बरसें कुछ देर और....

आंसुओं को पोंछ कर चुनें
जिंदा कुछ सपने और....