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कुछ हिम्मत भी दो चलने की, कुछ रस्ता आसान करो / रविकांत अनमोल
Kavita Kosh से
खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों का सम्मान करो
माली हो मालिक मत समझो, मत इतना अभिमान करो
जंग के बाद भी जीना होगा, भूल नहीं जाना प्यारे
जंग के बाद का मंज़र सोचो, जंग का जब ऐलान करो
कंकड़-पत्थर हीरे-मोती, दिखने में इक जैसे हैं
पत्थर से मत दिल बहलाओ, हीरे की पहचान करो
इस दुनिया का हाल बुरा है, इस जग की है चाल अजब
अपने बस के बाहर है यह, कुछ तुम ही भगवान करो
मंज़िल तक पहुँचाना है जो, मेरे घायल कदमों को
कुछ हिम्मत भी दो चलने की, कुछ रस्ता आसान करो
मरना चाहे बहुत सरल है, जीना चाहे मुश्किल है
मरने की मत दिल में ठानों, जीने का सामान करो
खो जाओगे खोज-खोज कर, बाहर क्या हासिल होगा
ख़ुद को खोजो ख़ुद को जानो, बस अपनी पहचान करो