भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ ही देर पहले / लक्ष्मीकान्त मुकुल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:16, 13 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डर जाते हो तुम लहकते जेठ में
खेतों से गुजरते हुए टिटिहरी की टी-टी सुनकर
ठीक सामने सड़क पर पार करते हुए सियार को देखकर हो जाते हो आशंकित
घूम कर बदल लेते हो राह
देर रात गए कुत्तों की रोने की आवाज
अंदर तक भयभीत करती है तुम्हें
अंधेरे में नदी का पाट लांघते
याद करने लगते हो हनुमान चालीसा के पाठ
ठिठक जाते हो सुनसान में सुनकर
वृक्ष-पातों की खड़खड़ा हटें
छत पर सोते समय
अर्ध रात्रि में निसिचर खग-झुण्डों की
पांखों की तेज आवाज में
खोजने लगते हो चुड़ैलों की ध्वनियाँ

कुछ देर पहले ही तो
जूझ कर लौटा हूँ मैं
हत्यारों की खौफनाक गलियों से
बेधड़क मचलता हुआ
बेहद निडर, बेखरोच, सुरक्षित!