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कुमार का हठ / प्रतिभा सक्सेना

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षड्मुख घूमि तीन लोकन में आइ चरन सिर नाये !
स्रम से थकित आइ बइठे, देखित गणेश मुस्काये !
'गये न तुम ,काहे से अपनो वाहन देख डेराने ?'
'पूरन काज कियो बुधि बल ते गजमुख परम सयाने
गणपति पहिल बियाहे कन्या पहिल पूजि सनमाने !'
 शंकर कहिन ,'सबै साधन में श्रद्धा -बुधि है भारी !'
गुस्सइले कुमार,' बातन से मोहे पितु महतारी ,
गई सबहिन की मति मारी  !'
'समरथ औ सुभ-मति से पूरन उचित पात्र अधिकारी,
  इनका धारन करै बिस्व हित होवे मंगल कारी !
तनबल ,मनबल और बुद्धिबल की हम लीन परीच्छा ,
 जा सों होय सकारथ रिधि -सिधि हमरी इहै सदिच्छा !'
शिकायत षड्मुख की भारी !
 'पार्वती समुझावैं ,' तुम अति वीर महाबलधारी ,
साधन और उपाव सहज करि देत काज सब भारी !
बल ते सरै न काज अगम, तब बुद्धि उपाय सुझावै ,
हर्र-फिटकरी बिना रंग पूरो-पूरो चढ़ि जावे !
पूत तुम समुझौ बात हमारी !'

'बुद्धि वीर बे ,वे बाहु वीर तुम दोऊ मोर दुलारे ,
दुइ कन्यन सों दोनिउ भैया ब्याह करहु मोरे बारे !'
खिन्न कुमार उठे बोले 'तुम जौन कहा हम कीन्हा ,
आज्ञा सिर धरि दौरि थक्यो तौहूँ जस नेक न दीन्हा !
करो तुम ,जो भावै महतारी !
 
 स्रम पुरुषारथ भयो अकारथ हम बियाह ना करिबे ,
   उचटि गयो मन अब हम जाइ कहूँ अनतै ही रहिबे !'
गौरा गनपति करैं निहोरे अइस कुमार रिसाने ,
बहुत करी विनती कर जोरे विधि निरास पछिताने ,

पसुपति करि परबोध थकाने केहू भाँति न मानै
दोनिहुँ कन्या एकहि बर सों ब्याहन की तब ठाने !
'लिखी जो कउन सकै , टारी !'

भयो बियाह वेद विधि गिरिजा परिछन कीन्ह बधुन को ,
गौरा को परिवार निरखि अस अचरज देव वधुन को !
गनपति पाये रिद्धिृसिद्धि द्वौ पुत्र लाभ-सुभ जनमे ,
सुर-मुनि सबै सिहात कामना करत कृपा की मन में !
बिघनहर्ता गजमुख धारी !