Last modified on 15 अप्रैल 2012, at 17:52

कूक ! नहीं... / सुमन केशरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:52, 15 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन केशरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> कूक ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कूक ! नहीं...
इतनी सुबह
कोयल की यह कूक कैसी

आम के पत्तों-बौरों में छिपी
मदमाती, लुभाती
गूँजती कूक नहीं

एक विकल चीख़
जोहती
पुकारती
जाने किसे ?

आकाश निरभ्र
और कोई स्वर नहीं
न पक्षियों की चहचहाहट
न किसी बच्चे के रोने की आवाज़

उस बियाबान में
एकाकी खड़े पेड़ के पत्तों-बौरों में
छिपी एक कोयल शायद
और उसकी चीख़
कूक नहीं... कूख नहीं...