कैसे कहूँ फाग का अनुभव
रंग नहीं है इस जीवन में
पैसा कौड़ी हाथ नहीं है
समय हमारे साथ नहीं है
चुकता करें उधारी कैसे
मन उलझा है सौ उलझन में
मरद मेरा परदेस गया है
कहा wahan बीमार पड़ा है
क्या कह बच्चों को बहलाऊँ
डर बैठा है अंतर्मन में
कैसे मैं त्यौहार मनाऊँ
जाकर कहां हाथ फैलाऊँ
दुखियारी क्या तान सुनेगी
कूक न कोयल इस आँगन में