भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कूक न कोयल इस आँगन में / रूपम झा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:09, 1 अगस्त 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसे कहूँ फाग का अनुभव
रंग नहीं है इस जीवन में

पैसा कौड़ी हाथ नहीं है
समय हमारे साथ नहीं है
चुकता करें उधारी कैसे
मन उलझा है सौ उलझन में

मरद मेरा परदेस गया है
कहा वहाँ बीमार पड़ा है
क्या कह बच्चों को बहलाऊँ
डर बैठा है अंतर्मन में

कैसे मैं त्यौहार मनाऊँ
जाकर कहां हाथ फैलाऊँ
दुखियारी क्या तान सुनेगी
कूक न कोयल इस आँगन में