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कृतज्ञ / मनोज श्रीवास्तव

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परोसा भूखे तन की थाली में
स्नेह का सतरंगा व्यंजन,
उडेला उड़ेला प्यासे मन की प्याली मेंजीवन-संगीत का गुंजन
.....
झुलाया, अलमस्त सांसों की डोर पर
नचाया, धडकते धड़कते दिल की मृदंगी थाप पर
विचराया, आहों के सागर-तट पर