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कृपया ठुँग न मारें -1 / नवनीत शर्मा


मूँगफली के छाबे पर
उसने लिखा
‘कृपया ठुँग <ref>ठुँग मारना : पक्षियों द्वारा अपने भक्ष्य को में चोंच मार-मार कर नोंच खाने की क्रिया (पहाड़ी भाषा का शब्द)</ref> न मारें’
और आपको लगा
साज़िश के शिकार
नागरिक शास्त्र के प्रतीक
आपके कोट समेत
उतार दिए गए है‍ बाकी
कपड़े भी।
छाबे वाला अभी बच्चा है
वाक्य में ‘ठुँग’ का प्रवेश?
व्याकरण में बहुत कच्चा है।
पर सूरज प्रकाश को
पता है दुनियादारी का व्याकरण।
व्याकरण पर मत जाइए
उस ठुँग बचिए जो
आपकी की बेलगाम उँगलियों पर
लपलपाती आपकी जीभ के
मूतने से पहले ही पड़ गई है।
आप कहते हैं बेहयाई है।
पर वह आपके मजबूर अर्थशास्त्र की
ज़रूरी इकाई है।
उसके छाबे पर नहीं आए अमर्त्य सेन
न कोई भाषाविद।
आपको नापसंद ही सही
उसने बेहयाई की वर्ण माला से
चंद शब्द चुराकर
साहस का वाक्य गढ़ा है
जो बस का रूट पढ़ती
आपकी आँखों ने
बार-बार पढ़ा है।
 

शब्दार्थ
<references/>