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उठ दौडे पैर पयादे ही'''परिचय और स्थिति ''' भक्त सुदामा ब्रह्मण थे, झट पट से रहते थे देश विदर्भ नगर,मीत प्रभु बाहर आये।के सच्चे थे, बोले शुभ दिवस आज का है पत्नि भी पतिव्रता थी घर |कुछ किस्सा उनका बयां करू, हम प्रेमी के दर्शन पाये। छांया दारिद्र की घर पर थी, प्रीती व रीति न छानी छुपे झट प्रीतम कृष्ण सखा ढिग आये।वो भगवत रूप परायण थे, आशा उन्हीं पर निर्भर थी |थी बुद्धिमती पतिव्रता वाम, गुणवान चतुर सुन्दर नारी,पति इच्छा अनुकूल चले, थी श्रीपति को अतिशय प्यारी |देखत ही उपज्यो सुख आनन्द वो कविता कवि कौन बनाये।दुःख सुख सभी भोगती थी,अंग व अंग मिलाकर नैनन पर बात न जिह्वा पर आती, नैनन नित मीठे बैन बोलती थी, नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती |  '''पति -पत्नी वार्ता'''  इक रोज कहा कर जोर दोऊ, पति भूख से प्रभु नीर बहाये। प्राण निकलते हैं,नेह निबाहन हार प्रभो छोटे-छोटे छौना मोरे, बिन अन जल के कर मलते हैं |यह दशा देख अकुलाय रही, नहीं बच्चों को भी रोटी है,रह सकते नहीं प्राण इनके, अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये। कोमल है,वय छोटी हैं |इसलिए कृपा कर प्राणनाथ, तुम नमन करो अविनाशी को, मत करो देर, बस जाय कहो, सब हाल द्वारिका वासी को |
प्रभु मिले गले से गला लगा
चरणोदक लीनो धो धोकर।
बोले प्रेम भरी वाणी
पुछे हरि बतियां रो-रो कर।
निज आसन पे बैठा करके
सब सामग्री कर में लीनी।
चित प्रसन्नता से कृष्ण चन्द्र
विविध भांति पूजा कीनी।
बोले न मिले अब तक न सखा
तुम रहे कहां सुध भूल गये।
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी
प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये।
रुक्मणि स्वयं सखियां मिलकर
सब प्रेम से पूजन करती थी।
स्नान कराने को उनको
निज हाथों पानी भरती थी।
चंवर मोरछल करते थे
सेवा से दिल न अघाते थे।
निज प्रेमी के काम कृष्ण
सब खुद ही करना चाहते थे।
यह आनंद अद्भुत देख-देख,
द्विज सोचे यह जाने न मुझे |
करते हैं स्वागत धोखे में,
प्रभु शायद पहचाने न मुझे |
भक्त की कल्पना सभी,
उर अन्तर्यामी जान गए |
भक्त सुदामा के दिल की,
बाते सब पहचान गए |
बोले घनश्याम याद है कुछ,
जब हम-तुम दोनों पढ़ते थे |
थी कृपा गुरु की अपने पर,
पढ़-पढ़ के आगे बढ़ते थे |
है बात याद बन में भेजे,
सब हाल कहे प्रभु दर्शाके |
उस समय रहे बन माहिं दोऊ,
घबराए मारे वर्षा के |
दिल चिंता बढ़ी गुरूजी के,
कारण आंधी के आने से |
बिजली की तड़क निराली थी,
और पानी के बढ़ जाने से |
एक वृक्ष की ओट में, तुम हम बैठे जाय |
वर्षा रुकती थी नहीं, लीनी क्षुधा सताय |
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