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'''परिचय और स्थिति '''
भक्त सुदामा ब्रह्मण थे,
नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती |
बहुत मुद्दतों बाद कृष्ण पाया, पाया प्रेमी का ठीक पता। उठ दौड़े, चौके, प्रभु बोले, है कहां सुदामा बता बता। सुनते ही नाम सुदामा का, अति उर में प्रेम उमंग आया। प्रेम प्रभु तो खुद ही थे, हद प्रेम जिन्होंने बरसाया। '''पति -पत्नी वार्ता'''
हाल सुने करुणानिधि ने इक रोज कहा कर जोर दोऊ, पति भूख से प्राण निकलते हैं,छोटे-छोटे छौना मोरे, बिन अन जल के कर मलते हैं |यह दशा देख अकुलाय रही, नहीं बच्चों को भी रोटी है,रह सकते नहीं करुणेश करी करुणा प्राण इनके, अति भारीकोमल है,वय छोटी हैं |मीत सखा अरु प्रीत सखा सच आवत यों बहु याद तिहारी।इसलिए कृपा कर प्राणनाथ,मीत बड़े सब जानत आप तुम नमन करो अविनाशी को, बड़े हमसे सुधि लीन हमारीमत करो देर, बस जाय कहो,यों उठ दौरि न ढ़ील करी कित रंक सुदामा व कृष्ण मुरारी। सब हाल द्वारिका वासी को |
उठ दौडे पैर पयादे ही,
झट पट से प्रभु बाहर आये।
बोले शुभ दिवस आज का है,
हम प्रेमी के दर्शन पाये।
प्रीती व रीति न छानी छुपे झट प्रीतम कृष्ण सखा ढिग आये।
देखत ही उपज्यो सुख आनन्द वो कविता कवि कौन बनाये।
अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये।
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।
 
प्रभु मिले गले से गला लगा
चरणोदक लीनो धो धोकर।
बोले प्रेम भरी वाणी
पुछे हरि बतियां रो-रो कर।
निज आसन पे बैठा करके
सब सामग्री कर में लीनी।
चित प्रसन्नता से कृष्ण चन्द्र
विविध भांति पूजा कीनी।
बोले न मिले अब तक न सखा
तुम रहे कहां सुध भूल गये।
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी
प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये।
रुक्मणि स्वयं सखियां मिलकर
सब प्रेम से पूजन करती थी।
स्नान कराने को उनको
निज हाथों पानी भरती थी।
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