भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कृष्ण / सुरेश चंद्रा

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 20 अक्टूबर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाँसुरी के रंध्रों से
बहने दो स्वर
रेशा-रेशा मुक्त कर दो
शब्दों के हर झंझावात से

कृष्ण !
बचा, रचा-बसा
रहने दो मुझमें, केवल
तन्मय धुन का उत्सव.