Last modified on 26 जुलाई 2016, at 08:34

केकरा कहै छै कठिन / गणेश कुसुम

जबतक कमर नै कसलोॅ छै, तभिये तक कठिनाई छै,
दुनिया में ऊ कोन काम छै, जे नैं करलोॅ जाय ।

जब तक कदम नै उठलोॅ छै, तभिये तक ऊँचाई छै,
दुनिया में ऊ कोन शिखर छै, जे नै छूलोॅ जाय ।

जब तक आँख नै खुललोॅ छै, तभिये तक अंधियाली छै,
अंधेरा के की विशाद, जे नै भागी जाय ।

जब तक नै लागालोॅ छै पाल, तभिये तक किनारा दूर छै
कोन मौसम छिकै उ, जैमें पार करलोॅ नै जाय ।

जें पीयै लेॅ चाहै छै, वैं समुद्रोॅ के समुद्र पीयै छै,
चाहला पर चांद-तारा भी घोॅर आबी जाय छै ।

कहना की, बस करना छै, कत्र्तव्य पथ पर डटना छै,
दुनिया में ऊ कोन शक्ति छै, जेकरा नैं हासिल करलोॅ जाय ।