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केकरो भी राज हुबेॅ केकरो भी पाट हुबेॅ / अनिल शंकर झा

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केकरो भी राज हुबेॅ केकरो भी पाट हुबेॅ
केकरो भी खाट हुबै हमरा नै सुतै के।
लूट ब्यभिचार याकि तोप हथियार के भी।
बड़का दलाल केॅ भी चुपचाप सहै के।
कैहनो विवशता छै अपना के बीच में भी
आन्हरोॅ सुरंग में भी दिन रात चलै के।
खाहू लेली मिलेॅ या नै रोटी चाहै दोनो वक्त
भुखलोॅ पेटोॅ सें लेकिन मुसकैथें रहै के॥