Last modified on 12 जून 2017, at 11:11

के ईचरज है / कृष्ण वृहस्पति

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:11, 12 जून 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सावण री बीं रात
तूं पै'ली बार
मेह रै मिस
जद
उतरी ही म्हारै आंगणै।

म्हारी कविता रा
स्सै कागद
उण झिरमिर सूं
हरया हुग्या हा
अर
बरसां सूं सूंकी पड़ी
सबदा री नद्यां
भरयाई ही भावां सूं।

चैत रै उण दोपारै पछै
काई ठाह हो
कै नई आवैली
सुख री कोई सिंइया।
ईचरज तो है कै
लगोतार
इण तपतै तावड़ै सूं
ना तो सूखी भावां री नदियां
अर नाई ज
काळा पड़या
म्हारी कविता रा कागद।