भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैटवाक / राकेश रंजन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 14 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश रंजन }} फ़ैशन शो के जगमग मंच से उतरकर दबे पाँव इ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फ़ैशन शो के

जगमग मंच से उतरकर

दबे पाँव

इच्छाओं के अन्धेरों में

टहलती हुई

बिल्लियाँ


खरहे की खाल-सी मुलायम

बाघिन के पंजों-सी क्रूर

खंजर-सी नंगी

चमकीली


हर तरफ़ अन्धेरा

हर तरफ़ बिल्लियों की

नीली-भयानक

आँखों की चमक


प्रकाश-पथ के पथिक

ठमके हुए सरेराह

उनकी राहें

काटती हुई बिल्लियाँ

महान सिंहों की नस्लें

कुत्तों के झुंड में

तब्दील होती हुईं...