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कैनवस की औरत / मुक्ता

खुली सड़क के किनारे दरख्तों के बीच
चित्रकार औरत के चेहरे को कैनवस पर उतार रहा है
उसकी सधी उँगलियाँ औरत के चेहरे की बारीकियाँ तलाश रही हैं
अचानक चली आई बारिश...
गरज के साथ चमकती बिजली पेड़ों के झुरमुट में खो गई
औरत के होंठों के तिरछे कोनों में अंटक गए अनगिनत कई वर्ष
अंतिम बार न जाने कब मुस्कुराई थी मोनालिसा

चिनार पत्तों नें मोमजामे से फैला दिये हैं हाथ
हवा, पानी, मिट्टी की गंध औरत की कोख तक पहुँचने लगी है
और उसका चेहरा बदलता जा रहा है प्रार्थना में

उधर एक और औरत होटल के भव्य कक्ष में नाच रही है
मरजीना जैसे तराशे बदन वाली औरत का शरीर नाच रहा है
आँखों की पुतलियाँ थिर हैं
बदन पर हैं लाल धब्बे और पाटी गई सूराखों के निशान
शराब के टकराते जामों के बीच छाया सी डोल रही है नाचती औरत
और आँखें उसकी तलाश रहीं हैं अलीबाबा।

यह समय है या अनन्त सुरंग
चेहरे के अंदर घूमने लगे हैं कई चेहरे
कैनवस समेत मंच से उतर चुका है अलीबाबा।