भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैन्हेंकि / रौशन काश्यपायन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आय सें कुछुवे दिन पहिलेॅ
हमरोॅ देश सोना के चिड़िया कहाय छेलै
मतरकि आय तेॅ सोना रोॅ चिड़िया
एकदम अनसघरोॅ रं होलोॅ जाय रहलोॅ छै
कैन्हेंकि यहाकरोॅ आदमी आबेॅ
खाली आपनोॅ-आपनोॅ टा करै में रहेॅ लागलोॅ छै
आबेॅ नै होय छै यहाँ पोरबंदर, लमही विसपी रं गाव
केन्हेंकि आबेॅ यहाँ बाथे आरो बिगहा रं सुद्घोॅ गाव केॅ
घरकच्ची केॅ आदमी अपना केॅ, आपनोॅ कुर्सी केॅ
आरो आपने टा मुँह मालिकोॅ केॅ हार पहनाय रहलोॅ छै ।
एक दिन यहाँ बहिन होय छेलै करुणावती रं
जौने ने देखलेॅ छेलै कोय जात-पात, राग द्वेष
आरो अनैलेॅ छेलै भाय-राजा हुमाँयू केॅ
कैन्हेंकि हुनका विश्वास छेलै आपनोॅ बनैलोॅ भाय पर
मतरकि आय गुजरात, उड़ीसा में
भाय-भाय के जरूरत नै बूझी रहलोॅ छै ।