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कैमरा : दो / कुबेरदत्त

टी०वी० सब दिखाता है
फौजी विजयघोष।
राजपथ विजयपथ दर्पपथ
लेफ़्ट राइट, लेफ़्ट राइट
लेफ़्ट राइट, थम।
साँस थामे
जीन कसे घोड़ों की
चमकीली पीठ पर
लहरियाँ लेता संगीत
बरतानी बाजों से
साँप की फुफकार-सा
       बाहर आता है
       राजा गाल बजाता है!

पार्श्व में
रोता है भारत का दलिद्दर!
सुरक्षा कवच पहन-पहन
बैठे सिपहसालार और सालारजंग
दायें-बायें नगर-प्रान्तों में गोली-वर्षा जारी
शासन पर विजय का पल-पल नशा तारी।

ढेर-ढेर होता है
भारत का दलिद्दर
सचिवालय के पार्श्व में रोता है!
खद्दर से रेशम तक
खोई से साटन तक
पहुँच गया गणराज्य
सैनिक के बूटों के नीचे जो
बजता है
महाकुठार शवों-अस्थियों का
शस्त्रों का नहीं।

कनस्तर ख़ाली है
माल-असबाब सब
अन्न, खाद्यान सब
तन्न, मन्न, धन्न सब
विजय गीत की
स्वरलिपियों में बदल चुका।

दासानुदास प्रवर
बना बैठा है प्रधान
लोक-लोक बज रहा
सज रहा तन्त्र-तन्त्र
सत्ता के मन्त्र पर
गर्दन हिलाता है
      विषधर वह
      जिसकी फुफकार
      आती बाहर है
      बरतानी बाजों की नलियों से
                       छिद्रों से।

आसमान बारूदी
हवा, पानी, धरती सब बारूदी
भारत का दलिद्दर
खाँसता है, खाँसता है।