भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैलेंडर / बालस्वरूप राही

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:25, 23 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर में सजी हुई चीजों में
कैलेंडर का ठाट निराला।

सुन्दर-सुन्दर चित्रों वाला,
चिकना-चिकना, रंग बिरंगा,
फर-फर फहराता है जैसे
लाल किले पर लगा तिरंगा।
फूलदान से भी बढ़-चढ़ कर
घर को शान बढ़ाने वाला।

साल, महीना, दिन, तारीखे,
सब है हमको याद जुबानी,
टीचर जी के बाद यही है,
शायद सबसे ज्यादा ज्ञानी।
जो भी पूछो बतलाएगा,
इसने उत्तर कभी न टाला।

पापा-मम्मी खुश हो जाते
जब पहली तारीख बताता,
हमें छुट्टियाँ दिखा-दिखा कर
बार-बार कितना ललचाता।
इतवारों के मुँह पर लाली
शेष दिनों का मुँह है काला।